प्रयोगकर्ता वार्ता:नेपाल तिरहुत खत्वे समाज

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-- नेपाली विकिपिडिया स्वागत (कुरा गर्नुहोस्) २१:४९, २९ डिसेम्बर २०२२ (नेपाली समय)[जवाफ दिनुहोस्]

खत्वे जाती को इतिहास[सम्पादन गर्नुहोस्]

खत्वे जाती को उत्पत्ति कसरी भयो? 2404:160:8058:3FE0:859E:37B4:1DE9:2EE9 (कुरा गर्नुहोस्) १३:२८, २६ मार्च २०२४ (नेपाली समय)[जवाफ दिनुहोस्]

खत्वे जातिका इतिहास[सम्पादन गर्नुहोस्]

🇳🇵नेपाल तिरहुत खत्वे समाज संस्था 🇳🇵

         🙏 खत्वे वंश का इतिहास🙏

          ◆-------------------------------◆

वैदिक युग मे महर्षि वशिष्ठ ब्रह्मा के मानस पुत्र होने के साथ साथ सप्त ऋषियों में भी शामिल थे।

महर्षि वशिष्ठ इक्ष्वाकु वंश का कुल गुरु होंने के साथ साथ भगवान राम के  आचार्य भी  थे।

महर्षि वशिष्ठ के पत्नी का नाम " अरुंधति " थी

महर्षी वशिष्ठ के 101 पुत्रों में एक पुत्र शक्ति मुनि थे।

शक्ति मुनि एवं सुर्यवंशी राजकुमार वीरसाह के बीच मे एक बार बात-विवाद हो गया।

इससे क्रोधित होकर शक्ति मुनि वीरसाह को श्राप देकर भयंकर राक्षस बना दिया ।

वीरसाह राक्षस बनते ही राक्षस प्रविर्ती के कारण शक्ति मुनि के साथ साथ वशिष्ठ ऋषि के 100 पुत्रों को खा जाते है।


■NOTE:-ये बात ध्यान देने वाली हैं कि शक्ति ऋषि की पत्नी अद्यश्यान्ति , शक्ति मुनि के मृत्यु से पहले ही गर्ववती थी।


इस घटना के बारे में जब महर्षि वशिष्ठ को पता चलता है तब वह काफी दुःखी होते हैं। और उसके पश्चात महर्षि वशिष्ठ हिमालय चले जाते है।

हिमालय पर कई महीनों बाद महर्षि वशिष्ठ वेदों का उच्चारण सुनते हैं।

महर्षि वशिष्ठ वेदों के मंत्र सुनकर अचार्यचकित हो जाते की उनके अलावा यहां ऐसा कौन व्यक्ति हैं जो वेद मंत्रों का उच्चारण कर रहे हैं।

इतने शक्ति मुनि के पत्नी  अद्यश्यान्ति  बताती है कि ये वेद पाठ उनके पुत्र कर रहे हैं।

यह सुनकर वशिष्ठ ऋषि काफी खुश होते है।

और बालक के जन्म होने के बाद उसका नाम "पराशर" रखा।

इसी पराशर मुनि एवं सत्यवती के पुत्र का नाम " वेद व्यास"

होता है

और वेद व्यास एवं वाटिका  के पुत्र का नाम " सुकदेव ऋषि "  होता है।

सुकदेव ऋषि एवं पिवरी के 12 पुत्रों में एक पुत्र "गौर मुनि" था।

इसी " गौर मुनि "  एवं " माता मातेर " के तीन पुत्र हुए जिनका नाम इस प्रकार था:- (1)शहशिया

                                        (2)निकुंजिया

                                        (3)चिरंजी

Note:-शहशिया महराज " ब्रह्मक्षत्रिय " थे। अर्थात वे जन्म  ब्राह्मण थे लेकिन कर्म से " क्षत्रिय " भी थे ।

◆----------खत्वे वंश------◆

■खत्वे वंश की शरुआत शहशिया महराज एवं उनके भाइयो से हुआ था।

अब चूंकि शहाशिया महराज ब्राह्मण थे इसलिए उनके वंसज भी ब्राह्मण थे।

लेकिन वर्तमान में शहशिया महराज के वंसज ब्राह्मण नही है। और इसका कारण है विदेशी आक्रमकता जैसे:- यवन या युनानी, मुगल ,अफगान,अंग्रेज एवं कुछ भारतीय क्रूर राजा।

इन सब की वजह से खत्वेवंश पूर्णतः बर्वाद हो गया और वो   

शुद्र बन गए।

ये बिल्कुल वैसा ही हुआ जैसे बाल्मीकि समाज, भूमिहार समाज, महार समाज ,कोली समाज, शाक्य समाज ,मौर्य आदि समाज को लोगो ने शुद्र बना दिया।

◆आपकी जानकारी के लिए बता दु की वाल्मिकी समाज एक ब्राह्मण समाज था।

◆भूमिहार समाज भी अयाचक ब्राह्मण समाज माने जाते हैं लेकिन कुछ लोग  ऐसे भी है जो उन्हें ब्राह्मण नही मानते हैं

◆महार समाज नागवंशी क्षत्रिय थे।

◆कोली एवं शाक्य जाति प्राचीन काल में क्षत्रिय जाति थे

◆मौर्य समाज चंद्रगुप्त मौर्य के वंसज है।। और  चंद्रगुप्त मौर्य प्राचीन शाक्य क्षत्रिय थे।

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◆वैदिक काल के शूद्र निषाद (मल्लाह,बिंद, भोई) थे।

इसके अलावा मुसहर,डोम, हलखोर,  आदि भी शुद्र माने जाते हैं।

◆वैश्या प्रवृत्ति के हर जाति शूद्र माने जाते हैं।

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■ खत्वे समाज  के लोगो ने ब्राह्मण धर्म मजबूरी में छोर कर अलग अलग पेशा अपनाया जैसे :-बुनाई का पेशा, खेतिहर का पेशा, इसके अलावा कहारी भी किया।

आपकी जानकारी के लिए बता दु की चंद्रवंशी राजपूतो ने भी मजबूरी में कहारी किया उसके बाद वो "रवानी" कहलाया।

Note:-मूल कहार निषाद, मल्लाह, बिंद, भोई आदि को माना जाता है।

NOTE:-शहशिया महराज एवं राजा सल्हेश पासी दोनो समकालीन थे।

NoTE:-राजा सल्हेश एवं राजा सुहलदेव अलग अलग समय के राजा थे। लेकिन वामपंथी लोग इसे एक मानते हैं।

राजा सल्हेश "पासी" जाति के थे लेकिन सुहलदेव "राजभर"

जाति के थे।

NOTE:-मिथिला में जो शादी के समय ब्रह्म पूजा होता है। उसमे ब्रह्मा जी की पूजा होता है।

ब्रह्म पूजा विशेष रूप से सिर्फ खत्वे समाज के लोग करते हैं। और अन्य कोई समाज के लोग ब्राह्म पूजा नही करते हैं।

NOTE:-पासी समाज के लोग राजा सल्हेश को पूजते हैं ना की ब्रह्मा को पूजते हैं100%

     ◆--खत्वे शब्द की उत्पत्ति--◆

     खत्वे शब्द की उत्पत्ति " खांडल-विप्र " संस्कृत शब्द से हुआ था।

★खांडल विप्र = खड्ग +     

ल(प्रत्यय) + विप्र

             

यहाँ "खड्ग" का अर्थ तलवार होता है और " ल "का अर्थ

धारण करने वाला होता है जबकि " विप्र " का अर्थ

ब्राह्मण होता है


◆ऊपर बताये गए बातों से यही निष्कर्ष निकलता है कि " तलवार धारण करने वाले ब्राह्मण " को ही " खत्वे " कहा गया था।

◆खत्वे समाज के अंतिम महापुरुष दादा सहशिया महराज थे जो ब्रह्मक्षत्रिय थे।

अर्थात वो जन्म से ब्राह्मण थे लेकिन कर्म से परशुराम की तरह क्षत्रिय थे।

■खत्वे समाज के आदिपुरुष महर्षि वशिष्ठ थे। जो कि भगवान राम के गुरु भी थे।

●कुछ खत्वे समाज के लोगो का प्रमुख टाइटल  "खंग" है। खंग का अर्थ तलवार होता है।

खंग टाइटल रखने के पीछे की वजह यही है कि वो खत्वे वंस से belong करते हैं। और आपको तो पता ही है कि खत्वे के अर्थ भी तलवार धारण करने वाला ब्राह्मण होता है

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Note:-समाज मे एक गलत अवधारणा फैलाया गया है को खत्वे शब्द की उत्पत्ति पाली शब्द " खत्तीय " से निकला था । जो कि गलत है

◆खत्तीय के एक पाली शब्द है जिसका संस्कृत में अर्थ " क्षत्रिय " होता है।

खत्वे शब्द की उत्पत्ति महाभारत काल मे ही हो गया था।

जिसका कुछ कुछ वर्णन महाभारत में आज भी देखने को मिलता हैं।

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●गोत्र:-पराशर

●कुलदेवता:-(1)सहशिया

                      महराज

                (2)निकुंजिया

                         महराज

                (3)चिरंजी महराज

●कुलदेवी:-माता मातेर,

●शाखा:-माध्यंदिनि

●शिखा:-दाहिना

लेख: करण खत्वे..... 183.171.104.118 (कुरा गर्नुहोस्) १३:५३, २६ मार्च २०२४ (नेपाली समय)[जवाफ दिनुहोस्]